बातें अनकही
जिनका अपना है एक आसमान
चाँदनी की धूप में लोट-पोट
आकाशगंगा में भींगकर
नन्हें से चेहरे मुस्कुराते
दिन - रात ।
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धूल में खिलकर
मैंने जीवन को जाना
एक दिन धूल में मिलकर
धूल हो जाना
इतना प्रगाढ़ प्रेम
क्या जाना ?
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स्वेच्छा में बहके रिदम तो टूटेगी
कोरस का तबादला पक्का है ।
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न शब्द ही है
न ही कोई आवाज
न कोई चिन्ह
न प्रतीक संकेत विशेष
आज मौन से ही यह पूरा संवाद होगा ।
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पर्वतों के दरकते हिये
की मर्मांत आवाज
सुनते है वे पशु - पक्षी
और आकुल हो जाते है
रखते है परिज्ञान
अपनों का हाल
और निभाना साथ
और एक हम है
मतलब में जीते है
मतलब में ही मरते ।
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