ममत्व की प्यारी निंदिया


तूफां अन्धेरी गरजती रात 

सुनसान निःसृत अनजान

हवाओं का था केवल शोर

तारक जन अनगिनत अनन्त में

चमक रहे थे घुति से प्रकाशमय

कला में पूर्ण हो रहा था चंद्र घुतिमान

वेगवान झलक रहे थे बहते 

आकाशगंगा में टिमटिम तारे । 

मन नयनों में तिरता - सा बन 

भाव - विचार आया ...... रात के

गहन तम में प्रकाश करता

रोशन जहाँ , को शीतल चाँदनी देता

स्वयं अंधेरे में रहे ,

सूरज के आने तक  

संघर्ष , नेह , अर्पण , समर्पण , तप

से हो सुसंपन्न जीवनालोक 

ममत्व की प्यारी निंदिया से जग   

के अथक श्रम को हरता ।

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