नवप्रभात का करते स्वागत
नवप्रभात का करते स्वागत
बीती रजनी की अलस छोड़
जीवन संघर्ष से अमृत खोज
करुणा प्रेम दया का सोता
नदियों में बहता गंगाजल
ऊँचे हिमालय से ले आशीष
दृढ़प्रतिज्ञ न मुश्किलों से हारे
न द्वेष हो न मन मलिन
रिक्त रहे न प्रकाश से कोई
कोना अंधकार में दीप बन
उजियार जग रोशन कर
खुद पर हौसला रख
ओ राही नवजीवन के
मार्ग तेरा प्रशस्त हो ।
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