देख उसे जो मंद मंद मुस्काती थी ..!
वीणा आज रखी थी चुप
छेड़े नहीं गए थे मधुर राग
उस पर , समय कुँठाव काली
चुप अंधेरे में खो गई थी
समाधिस्थ अंतर्मन में वो यों
रखी थी , बिन वादक के लय सजीव
विधुरनी हो गई थी
उसने देखा था जग के हर रुप को
प्रत्यक्ष और संवेदना में सुनाए थे
कई बार गीत मधुर
वह माता थी अपनी थकी - हारी संतान को
हरहाल में अपनाती थी उसे हौंसला
प्यार की थपकी दे जग कुठारों से बचाती
पथ में दीपक लौ जलाती थी
मन के ज्वार नाद को शांत करती
देख उसे जो मंद मंद मुस्काती थी ..!

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