माँ गंगे !
गंगा तुम दूर रहकर भी मेरे पास हो
मन आँचल में लहराता तेरा निर्मल जल
आँखों की ज्योति का सार प्रत्यक्ष है
तुमसे ही यह आधार मिला
प्रेम का सरिस सुकोमल उपहार मिला
करुणा ममत्व सुंदर हृदय उद्गार मिला
तेरे घाटों में चंचल मन को एकांत मिला
अग्नि की तपन में शीतलता का साथ
बिना मोल जन्म - जन्म का प्यार मिला
भटके फिर लौटकर आए तेरी गोद में
जीवन को अपना बीता बचपन फिर एक बार मिला
तुझमे डूबकर ही आत्मा को अपने प्रभु का ध्यान मिला
बहती अविरल धारा ही तो ले आई साथ अपने
माँ गंगे ! तुम यूँही बहती रहना मननयनों में
एक दिन मैं आऊँगा भूला हुआ फिर अपने घर में
तेरे पावन जल में मिल के जो पाऊँगा
वर्णन क्या मैं कभी शब्दों में कर पाऊँगा
तेरा शिशु हूँ , है तू मेरी माता माँ गंगे !

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