फिर एक नई सुबह हो



फिर नई सुबह हुई

एक नए दिन की शुुुुरुआत साथ

एक नई कहानी का जन्म हुआ 

नए किरदार नए चेहरे 

नए कथानक नए मंच पर नए संवाद

नए देशकाल - वातावरण की नई  

परिस्थितियाँ नए संदर्भ नए प्रसंग

है सबकुछ नया आरंभ प्रयत्न प्रात्याशा

नियताप्ति और फलागम

शुध्द शाश्वत सत्य सदैव अटल

नित नव होता आने वाला कल 

हे मित्र ! कि अब जागो नित नव  

होती सृष्टि नवाचार की प्रेरणा देती

संबल सृजन नव मोती देती

गूँथना है जो सुंदर माला यदि

तो फिर उठो अपना कर्म करो

आलस्य प्रमाद मिथ्या है , त्याग करो

अपने आत्मरुप को जानो मानवता का

सच्चे  हिये से-- हिय विस्तार करो

बोने है मिट्टी में नव सृजन के बीज 

नव चैतन्यता का निर्मल जल सींचन चाहिए 

मन में विश्वास कुछ कर दिखाने का दृढ़

संकल्प समर्पण चाहिए 

क्या घबराना अब चट्टान - पहाड़ों  से

क्या घबराना धूप आँधी ओला वृष्टि तूफानों से

शून्य में ही है विस्तार छिपा 

मन फिर क्यों निराश करो 

तुम शून्य से ही नित नए की शुरुआत  करो

सबकुछ भीतर है छिपा

क्यों यहाँ - वहाँ भटकते हो

शक्ति उर की संचित कर मार्ग पर 

अपना पग तो रखो पहला कदम तो रखो

गिरने चोटिल होने की बात बाद की   

क्या हुआ जो पथ पर सौ बार हार मिले

प्रयत्न तुम्हारा कभी न रुके

चाहे पथ पर हो काँटें लाख बिछे

हर दिन एक नई शुरुआत करो

माथे पर हो शोभित साहस धैर्य का शुभ्र 

तिलक चंदन नव ऊर्जा का संचार करो

विचलित न हो जो अंधियारे से

वह भुवन दीप - प्रकाश बनो

नित नव विचारों की निर्मलता हो 

हृदय में बहती सौहार्द सरल गंगा हो

स्वस्थ स्वच्छ सुंदर मन में आलोकित 

आस्थाबिंदु विश्व - प्रेम की जग में होती

फिर एक नई सुबह हो ।


 

टिप्पणियाँ

  1. जीवन के लिए प्रेरणा के नवल संसार की संभावनाओं को उकेरती रचना. हार्दिक शुभकामनायें प्रिया जी 🙏🌹

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    1. आपकी स्नेहसिक्त प्रोत्साहन के लिए हृदयतल से धन्यवाद रेणु जी !

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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