पीड़ा के मौन संदर्भ
पीड़ा के मौन संदर्भ तीव्र हवा में पत्तों की
कड़कड़ाहट की घुलती आवाज है जो अतीत की
गहन चीत्कार करती है भविष्य के झूठे स्वप्न अंह
नित रहती है अपने वर्तमान से जुड़ी
हर आते - जाते पल का साक्षी बनकर ।
दबे स्वर में प्रार्थना करती हुई अपने को खोजती हुई
बार - बार वहीं घूमा करती है , अथक सतत ,
जाग गई है अपने प्रति उसका स्वाभिमान आज फिर
जाग उठा है , जो कभी अभिमान में निर्ममता के साथ
पैरों तले रौंदा गया था ,
चेतना कब तक ओझल रहती
काली स्याह रात में , प्रात न होगा क्या कभी ?
ऐसा तो नहीं ... मुखरित स्वर फिर गूँजेगा
मधुर लय ताल में , पीड़ा के मौन संदर्भों से
जो झील निःसृत प्रवाहित है , वह स्वयं अपनी
गति तय करेगी ...।

अपने प्रति उसका स्वाभिमान आज फिर
जवाब देंहटाएंजाग उठा है , जो कभी अभिमान में निर्ममता के साथ पैरों तले रौंदा गया था , देर सबेर जगना ही है उसे...बहुत ही मार्मिक भावपूर्ण सृजन ।
किसी भी चीज को एक हद तक ही अनदेखा किया जा सकता अगर वह अपनी सीमा का अतिक्रमण करने लगे , तब यह जरुरी हो जाता है कि उसका मखुर विरोध किया जाए । अन्याय सहना अन्यायी का। साथ देने जैसा ही है । रचना पर अपनी सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आभार आपका ब्लॉग पर सदैव स्वागत है ।
हटाएंहर पीड़ा का अंत निश्चित है साथ में पीड़ा ही सृजन की जननी है. एक भावपूर्ण रचना 🙏🌹
जवाब देंहटाएंसच पीड़ा सृजन की एक उत्प्रेरक शक्ति भी है और हर पीड़ा का अंत भी निश्चित है । इसलिए व्यक्ति को कभी भी निराशा नहीं होना चाहिए , आशा ज्योत अमर है ।
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