एक बीते जीवन की डोर अपने अंतर में लिए
स्मृतियों के देश में एक बीते जीवन की डोर
कथा कहती जुबानियाँ मुस्कुराती नादानियाँ
कुछ शरारतें कुछ मासूमियत
जिन्हें देख खुशी से पुलक उठते थे
बड़़े , भूला अपनी सारी परेशानियाँ
बहुत से सबक खेल - खेल में ही
संस्कार बन जीवन के अंतरंग भाग हो गए
पग - पग बढ़ते हुए , टकटक करती धूप घड़ीनीम चंपा चमेली से सौंधे आंगन में कुटिया की
छाँव में व्यतीत अवकाश की दिन - दोपहरी
अनुभव अन्वेषण आकार लेते गए
अचम्भे अजूबे लगते थे तब कार्य अनेक
जो रहे स्वाभाविक सहज सदैव कई प्रश्न अबूझे
उत्तरों को खोजते - फिरते जगंल - जगंल
नदिया - तालाब किनारे मैदान में कुश्ती
बातें दूर तक चलती ।
बरसात की झड़ियों में प्यारी माता धरती
हरियाली चुनर में खिलती , हमारी नाव कागज
की फिर पानी में बहती , मेला दिल को भाता
गुब्बारे के लिए क्या - क्या करतब दिखलाता
अपनी अड़ियल जिद पर मोटे - मोटे अश्रुधार भी
दो अँखियों से बह चले और कितनी जल्दी
बह चली समय सरगम ...
तारों - सितारों , चंदामामा और माँ से मिलकर जहाँ
बच्चे की रात पहले होती थी परियों के देश में सपने
बुनती आँखे ... धीरे से खुलती लौट चले दबे पाँव अब
चुपके - चुपके , घुलने दो यह आनंद न कोई विघ्न पड़े
स्मृतियों के देश में एक बीते जीवन की डोर अपने अंतर में लिए

प्रिय प्रिया जी, सबसे पहले ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक अभिनन्दन हैं!आपकी सरस टिप्पणीयों के माध्यम से आपकी साहित्य रूचि को जान पाई! आज आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा!यूँ तो यहाँ कई बार पहले भी आ चुकी पर समयाभाव के चलते लिखना न हुआ! स्मृतियों के आँगन को निहारती, बुहारती ये रचना जीवन के निर्भय संसार की यात्रा करवाती हैं!सच में अपने विगत संसार में झाँक कर जब पुरानी यादों से सामना होता है तो भावुक होना स्वाभाविक है.! बचपन के गुब्बारे, मेले, जिद, चाँद सितारों की कहानियाँ, व्यर्थ की कल्पनाएं भले पीछे छूट गए पर आज भी उनकीयादें अनायास मुस्कुराने के लिए विवश करती हैँ यादों के विस्तृत संसार की यात्रा कराती रचना के लिए हार्दिक बधाई और ब्लॉग लेखन की ढेरों शुभकामनायें 🌹🌹❤️❤️
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया रेणु जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर बेटा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया !
हटाएंबहुत सुन्दर, भावपूर्ण सृजन। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ 💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ज्योति जी !
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