तितली



विगत   दिनों  के  प्रकाश  में

रजनी   के   रजत   हास   में

ओस  कणों   के   मृदुल  वास  में

फूलों   के   मधुर   पराग  में

झिलमिलाता   स्वप्न  चलते  जाने  का

पथ  पर   बिखरी   छटा    सलोनी

बंद   राहें    कोष्ठक   से   दरवाजे   खोल   दो

एक   करवट   ली   है   जिंदगी   ने

मंजिल  को  तो  मिलना  ही  है  नियति 

सफर   का    उजास   यूँ    फीका  न  जाए 

सुषमित  सी  भोर  खिड़की   पर   आई  है

चिड़िया   रानी   ने   किलक   जगाई  है

अमराई   दी   मुसकाई   हौंले  -  हौंले   हवा

संग   घुली   चली   आई   है   वंसत   मन

तितली   भारी   बंद  -  बक्स   बोझों   की  

काई   को   हल्का   करती

मुझे   जीवन   जीना   सीखाती

उड़ने   को   कहती 

बन  मेरी  दादी -  नानी   वह   मुझसे  मिलने  को   

दूर -  दराज   से   उड़कर   आई   है  !


*  तारों के जाल में उलझी

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