इतना ही पल काफी है
इतना ही पल काफी है हार और जीत इन दोनों से पार स्मृतियों के गुजरते देश में जाने को बीते लम्हे की खुशबू ओढ़े किसी लिफाफे की तहे परतों को खोलता हुआ झरोखों में ढलता दिन प्रभात का अभिव्यंजक पुलकों में समाविष्ट मन की हलचल का तार