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माँ गंगे !

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गंगा तुम दूर रहकर भी मेरे पास हो मन आँचल में लहराता तेरा निर्मल जल आँखों की ज्योति का सार प्रत्यक्ष है तुमसे ही यह आधार मिला प्रेम का सरिस सुकोमल उपहार मिला करुणा ममत्व सुंदर हृदय उद्गार मिला

ये प्रेम ही

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नदियाँ चुपचाप नील गगन में बहती है । वे हमसे चुपचाप कुछ कहती है । श्वेत - नील स्वच्छ पयो परिधान रजतवर्ण चाँदी सा बर्क टुकड़ा भर देता वेग गति में झरने से बहती कलकल ध्वनि शांत ब्रह्म निनादनी हरा जंगल चहुँओर कोयल कूँजती डाली पे